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वे॒नस्तत्प॑श्य॒न्निहि॑तं॒ गुहा॒ सद्यत्र॒ विश्वं॒ भव॒त्येक॑नीडम्। तस्मि॑न्नि॒दꣳ सं च॒ वि चै॑ति॒ सर्व॒ꣳ सऽ ओतः॒ प्रोत॑श्च वि॒भूः प्र॒जासु॑ ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वे॒नः। तत्। प॒श्य॒त्। निहि॑त॒मिति॒ निऽहि॑तम्। गुहा॑। सत्। यत्र॑। विश्व॑म्। भव॑ति। एक॑नीड॒मित्येकऽनीडम् ॥ तस्मि॑न्। इ॒दम। सम्। च॒। वि। च॒। ए॒ति॒। सर्व॑म्। सः। ओत॒ इत्याऽउ॑तः। प्रोत॒ इति॒ प्रऽउ॑तः। च॒। वि॒भूरिति॑ वि॒ऽभूः। प्र॒जास्विति॑ प्र॒ऽजासु॑ ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:32» मन्त्र:8


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यत्र) जिसमें (विश्वम्) सब जगत् (एकनीडम्) एक आश्रयवाला (भवति) होता (तत्) उस (गुहा) बुद्धि वा गुप्त कारण में (निहितम्) स्थित (सत्) नित्य चेतन ब्रह्म को (वेनः) पण्डित विद्वान् जन (पश्यत्) ज्ञानदृष्टि से देखता है, (तस्मिन्) उसमें (इदम्) यह (सर्वम्) सब जगत् (सम्, एति) प्रलय समय में संगत होता (च) और उत्पत्ति समय में (वि) पृथक् स्थूलरूप (च) भी होता है, (सः) वह (विभूः) विविध प्रकार व्याप्त हुआ (प्रजासु) प्रजाओं में (ओतः) ठाढ़े सूतों में जैसे वस्त्र (च) तथा (प्रोतः) आड़े सूतों में जैसे वस्त्र वैसे ओत-प्रोत हो रहा है, वही सबको उपासना करने योग्य है ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! विद्वान् ही जिसको बुद्धि बल से जानता, जो सब आकाशादि पदार्थों का आधार, प्रलय समय सब जगत् जिसमें लीन होता और उत्पत्ति समय में जिससे निकलता है और जिस व्याप्त ईश्वर के बिना कुछ भी वस्तु खाली नहीं है, उसको छोड़ किसी अन्य को उपास्य ईश्वर मत जानो ॥८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(वेनः) पण्डितो विद्वान् (तत्) चेतनं ब्रह्म (पश्यत्) पश्यति (निहितम्) स्थितम् (गुहा) गुहायां बुद्धौ गुप्ते कारणे वा (सत्) नित्यम् (यत्र) यस्मिन् (विश्वम्) सर्वम् जगत् (भवति) (एकनीडम्) एकस्थानम् (तस्मिन्) (इदम्) जगत् (सम्) (च) (वि) (च) (एति) (सर्वम्) (सः) (ओतः) ऊर्ध्वतन्तुः पट इव (प्रोतः) तिर्य्यक् तन्तुषु पट इव (च) (विभूः) व्यापकः (प्रजासु) प्रकृतिजीवादिषु ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यत्र विश्वमेकनीडं भवति तद्गुहा निहितं सद्वेनः पश्यत्। तस्मिन्निदं सर्वं समेति च व्येति च स विभूः प्रजास्वोतः प्रोतश्च स एव सर्वैरुपासनीयोऽस्ति ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! विद्वानेव यं बुद्धिबलेन जानाति, यः सर्वेषामाकाशादीनां पदार्थानामधिकरणमस्ति, यत्र संहारकाले सर्वं जगल्लीयते सर्गकाले च यतो निस्सरति येन व्याप्तेन विना किञ्चिदपि वस्तु न वर्त्तते तं विहायाऽस्यां कञ्चिदप्युपास्यमीश्वरं मा विजानन्तु ॥८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान लोक ज्याला बुद्धीने जाणतात. आकाश वगैरे पदार्थांचा जो आधार आहे आणि प्रलयाच्योवळी सर्व जग ज्यात लीन होते व उत्पत्तीच्या वेळी ज्याच्यातून जग उत्पन्न होते, तसेच प्रत्येक पदार्थ त्या ईश्वराने व्यापलेला आहे. त्याला सोडून दुसऱ्या कुणालाही उपास्य देव मानू नका.